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Sunday, January 10, 2021

खुश हूँ मैं

 

रोज़ तो नही मगर कभी कोई

लम्हा सवाल सा छोड़ जाता है

ऐसे सवाल जिनके जवाब नहीं

वो चुभते नासूर हो जाते है

 

ज़ख्म जैसे भी हो, भर जाते हैं

मगर पुरानी भूली चोट में भी

टीस तो हर सर्दी में उठती है

क्या ऐसी सर्दी की दर्द उसे होती है

 

क्या उसे कभी महसूस हुआ

जो दर्द उसकी चुप्पी ने मुझे दिया

जब मेरी पनिली आंखों ने

उसके मन का सूखा देखा

 

क्या  उसे भी वो आह सुनती होगी

जो मेरे होठों  पे दबी रह गयी

उसकी अन्तरात्मा कचोटती होगी

जब उसे मेरा ख्याल आता होगा

 

खुश हूं मैं अपनी ज़िन्दगी से

बस किसी दिन एक

एक गुजरता सा लम्हा

एक सवाल सा छोड़ जाता है

 

Monday, March 12, 2018

Ghar

उसका घर मुझे नहीं अपनाता
उसके लोग मेरे नहीं हैं 
वो मेरा घर नहीं है
मेरा घर भी मेरा नहीं था
ऐसे तो क्या वो मेरा नहीं है?
या फिर मैं ही कभी किसी की नहीं हूँ?

Zakhm

मेरे ज़ख्मों का होना
उनकी समझ के परे है
सिर्फ कह देना की हाँ
हम समझते है बहुत नहीं है
मैं अपेक्षा भी नहीं रखती अब
के उन्हें दिखे वह रेखा जो
मेरे गाल पे मुझे महसूस होती है
अब कुरेदने से भी डरती हूँ जिसे
वो कैसे जानोगे के क्यों
वहां बाजू पे अब तक भी
काँच किरचता है सूखे ज़ख्म में
जब मैं खुद नहीं जानती क्यों

Sunday, March 12, 2017

ये शहर




मेरी सब शरारतों का गवाह  
मेरी उम्र से बस कुछ ही बड़ा 
इसकी बाँहों में खेली मैं बढ़ी  
इसकी राहों पे गिरी और संभली

ये मेरे बचपन का दोस्त 
ये मेरी जवानी का साथी 
इसके फूलों की खुशबू मेरी 
इसके पतझर के रंग मेरे अपने

हर मोड़ में कोई किस्सा सुहाना 
हर ईमारत में मेरा हिस्सा पुराना
इसकी हवाएं मेरी कहानी बांचती
इसके पानियों में मेरे दर्द के घोल 
 ये शहर मुझे भूल नहीं पायेगा 
मेरे दिल सा ही तो है ये शहर 

Wednesday, February 3, 2016

Ardhaakar

इस दिल के पान के पत्ते  का
इक कोना चिर के कहाँ  गिरा
मिटटी पानी या हवा हुआ
हमको लेकिन फिर न मिला

कटे फटे इस दिल कों अब
बस यूँही लेकर  फिरते  है
कुछ चाक पैबंद  लगा के
अब आकार कों पूरा  करते है

आकार जो पूरा हो भी गया
फिर जान कहा से फूकेंगे
कुछ ज़ख्म ये दिल का ऐसा है
खुद दर्द ही जिसका मरहम है

Saturday, July 4, 2015

Tum

तुम्हारी याद दिल के एक कोने में अपना घर बनाए बैठी है
के मेरा दिल उस ही का घर बन के रह गया
बाकी जगह खाली ही पड़ी है

कई नये बाशिंदे दस्तक देते हुए  दिल में घर करना चाहते है
मगर ये है कि तुम्हे ही ले के बैठा है
मैं आज़ाद होना भी नही चाहती

पर फिर उस अधूरेपन क्या करूँ
जो तुम्हारे होकर भी होंने का एहसास
हर पल मेरे इसी दिल के हर कोने में भर देता है

तुम लौट नही सकते हर शख्स मुझे ये समझता है
मैं नही समझा पाती उन्हे कि  लौट के तो वो आता है
जो कहीं जा भी सका हो, तुम तो गये ही नही

Thursday, August 29, 2013

साल इक बीता बिना तुम्हारे

सुर की समझ तो  थी पहले भी
सीखा तुमसे बोल पिरोना
गीत हैं बिखरे बिना तुम्हारे
साल इक बीता बिना तुम्हारे

हर सू वैसे रंग ही रंग थे
सीखा तुमसे रंग सजाना
अब रंग फीके बिना तुम्हारे
साल इक बीता बिना तुम्हारे









राहें चलती थी तुम बिन भी
 सीखा तुमसे राह पे चलना
मोड़ हर सूना बिना तुम्हारे
साल इक बीता बिना तुम्हारे

जीवन हमको जी ही रहा था
सीखा तुमसे जीवन जीना
और अब जीना बिना तुम्हारे
साल इक बीता बिना तुम्हारे





This is a remembrance for Asheesh Sharma...My closest friend, a pure soul who touched my life in a magical way when I needed it most and an exemplary Pilot in the IAF!! You live in our hearts Asheesh... Souls like you can never perish

Friday, March 1, 2013

सुबह क़ी चाय


सुबह सपने में आँख खुली तब
खुद को तुम्हारे घर के सोफे पे पाया
अकेली ही बैठी चाय पी रही थी

तुम तो अपने कमरे में अब तक
सो रहे थे, इतवार का दिन जो हुआ
आज के दिन सोना तुम्हारी ज़िद्द थी


फिर सोचा कि तुम्हे जगा दूं अब
आख़िर एक ही दिन तो है आज मिला 
पिछले कई दिन से तो अकेली ही थी

चाय ले कर तुम्हारे सिरहाने पहुँची जब
तो रुक जाऊं, सोने दूं एक मन किया
मगर फिर थोड़ा स्वार्थी हो गयी थी

गीले बाल तुम्हारे काँधे पे फैलाए जब
तुमने सोई सी आँखे खोलकर देखा
और उनमे कुछ देखकर शर्मा गयी थी


इतने दिन का एकाकीपन छू हुआ तब
जब तुमने अपनी बाहों में भर लिया
और फिर मेरी आँख खुल गयी थी

देखा वही मेरा सूना घर है अब
न सोफा न बिस्तर न ही चाय
स्वप्न ही था, तो ये क्या सोच रही थी