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Monday, March 12, 2018

Zakhm

मेरे ज़ख्मों का होना
उनकी समझ के परे है
सिर्फ कह देना की हाँ
हम समझते है बहुत नहीं है
मैं अपेक्षा भी नहीं रखती अब
के उन्हें दिखे वह रेखा जो
मेरे गाल पे मुझे महसूस होती है
अब कुरेदने से भी डरती हूँ जिसे
वो कैसे जानोगे के क्यों
वहां बाजू पे अब तक भी
काँच किरचता है सूखे ज़ख्म में
जब मैं खुद नहीं जानती क्यों