रोज़
तो नही मगर कभी कोई
लम्हा
सवाल सा छोड़ जाता है
ऐसे
सवाल जिनके जवाब नहीं
वो
चुभते नासूर हो जाते है
ज़ख्म
जैसे भी हो, भर
जाते हैं
मगर
पुरानी भूली चोट में भी
टीस
तो हर सर्दी में
उठती है
क्या
ऐसी सर्दी की दर्द उसे
होती है
क्या
उसे कभी महसूस हुआ
जो
दर्द उसकी चुप्पी ने मुझे दिया
जब
मेरी पनिली आंखों ने
उसके
मन का सूखा देखा
क्या उसे
भी वो आह सुनती
होगी
जो
मेरे होठों पे
दबी रह गयी
उसकी
अन्तरात्मा कचोटती होगी
जब
उसे मेरा ख्याल आता होगा
खुश
हूं मैं अपनी ज़िन्दगी से
बस
किसी दिन एक
एक
गुजरता सा लम्हा
एक
सवाल सा छोड़ जाता
है
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