तुम्हारी याद दिल
के एक कोने
में अपना घर बनाए
बैठी है
के मेरा दिल
उस ही का
घर बन के
रह गया
बाकी जगह खाली
ही पड़ी है
कई नये बाशिंदे
दस्तक देते हुए दिल
में घर करना
चाहते है
मगर ये है
कि तुम्हे ही
ले के बैठा
है
मैं आज़ाद होना भी
नही चाहती
पर फिर उस
अधूरेपन क्या करूँ
जो तुम्हारे न होकर
भी होंने का
एहसास
हर पल मेरे
इसी दिल के
हर कोने में
भर देता है
तुम लौट नही
सकते हर शख्स
मुझे ये समझता
है
मैं नही समझा
पाती उन्हे कि लौट
के तो वो
आता है
जो कहीं जा
भी सका हो,
तुम तो गये ही
नही,
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